Friday, October 05, 2007

तपीश

सर्द सी धुप में तेरे जीसम की तपीश हो,
और हो साए आसमान के सरपरस्त,
दील में येक सुर गूंजें सुकून का
और खामोशी जुबान पे तराने से बीखेर जाये
पहलू में तेरे दीं डाले और वक्त हो तारों के जागने का
अंधेरों में महसूस हो तेरी छुअन के नर्म साए
आरजू यह खूबसूरत ख़्वाब है अब तक तो
क्या खबर कल हक़ीक़त बने गर तेरी भी ये हसरत हो

2 comments:

diksha said...

क्या खबर कल हक़ीक़त बने गर तेरी भी ये हसरत हो

inshallah!
:)

Harish said...

khwab kya hai?
bas haqeekat ka aaina hai!

shabdon mein dhaal ke, apni aarzoo,
apni soch ki gehri gaang se... humari trisha bhuja di tumne,
ho gayee zindigi se humaari ru-ba-roo!


my hindi is appauling, just mustered the courage to write a coup-a-lines

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